सूरज अपनी किरणों के साथ धीरे-धीरे ढल रहा था। संत कबीर नगर के एक छोटे से गांव में रामलाल, जो पेशे से एक लेखपाल था, अपने छोटे से घर के बाहर बैठा गहरे विचारों में डूबा था। पिछले बीस वर्षों से रामलाल ने ईमानदारी और निष्ठा से अपनी नौकरी निभाई थी। गांव के लोग उसकी सादगी और सच्चाई की कसम खाते थे। पर अब वही लोग उसे संदेह भरी नजरों से देख रहे थे। उसके खिलाफ निगरानी विभाग ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और गांव में उसकी इज्जत मिट्टी में मिल चुकी थी।
ठाकुर प्रताप की साजिश
रामलाल की यह स्थिति तब शुरू हुई जब गांव के प्रभावशाली जमींदार, ठाकुर प्रताप सिंह, उसके पास जमीन के कागजात में हेरफेर करने की पेशकश लेकर आए थे। ठाकुर ने रामलाल को बड़ी रकम का लालच दिया था, लेकिन रामलाल ने उसे सिरे से ठुकरा दिया। यह ठाकुर प्रताप की प्रतिष्ठा के खिलाफ था, और उन्होंने रामलाल को सबक सिखाने की ठान ली।
कुछ ही दिनों में रामलाल पर रिश्वत लेने और जमीन के कागजात में हेरफेर करने का आरोप लगा। निगरानी विभाग और भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों ने उसके खिलाफ जांच शुरू कर दी। गांव में उसकी छवि बर्बाद हो गई। लोग उसे रिश्वतखोर कहने लगे, और रामलाल को इस बेबुनियाद आरोप से लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
गिरफ़्तारी और अपमान
रामलाल की गिरफ्तारी हो गई। उसके परिवार के लिए यह सबसे बड़ा झटका था। उसकी पत्नी, सुमन, ने कई जगह मदद की गुहार लगाई, पर कहीं से कोई सहारा नहीं मिला। गांव में सबको यकीन हो चुका था कि रामलाल दोषी है। उसके बच्चे भी इस अपमान से तंग आ चुके थे। स्कूल में उनके सहपाठी उन्हें ताने मारते थे, और उनकी मां समाज में एक तिरस्कृत जीवन जी रही थी।
रामलाल ने वकील किया और खुद को निर्दोष साबित करने की पूरी कोशिश की, लेकिन ठाकुर प्रताप सिंह ने अपने पैसे और ताकत से पूरा तंत्र अपने हाथों में कर लिया था। गवाह खरीदे जा चुके थे, सबूत झूठे बनाए गए थे, और रामलाल के पास बचने का कोई रास्ता नहीं था। उसे एहसास होने लगा था कि अब न्याय पाना लगभग असंभव है।
ठाकुर से टकराव
एक दिन, रामलाल की कोर्ट में सुनवाई थी। वह मन में हजारों सवाल लिए गांव के रास्ते पर चल रहा था। तभी अचानक ठाकुर प्रताप सिंह अपने कुछ आदमियों के साथ वहां से गुजरा। उसने रामलाल की ओर देखा और हंसते हुए कहा, “देख लिया रामलाल, क्या हुआ तेरी ईमानदारी का? अगर मेरी बात मान ली होती, तो आज ये दिन नहीं देखने पड़ते। अब तू जिंदगी भर इसी तरह सड़ता रहेगा।”
यह सुनकर रामलाल का खून खौल उठा। उसकी आंखों में गुस्सा और अपमान की आग जलने लगी। उसे अब यह समझ में आ गया था कि उसकी ज़िंदगी बर्बाद करने वाला सिर्फ और सिर्फ ठाकुर प्रताप सिंह है। उसने जितना भी संघर्ष किया, जितनी भी कोशिश की, पर अंत में ठाकुर की ताकत और भ्रष्टाचार ने उसे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
अंतिम निर्णय
रामलाल अब तक शांत था, लेकिन ठाकुर की हंसी और तिरस्कार ने उसके भीतर के सारे गुस्से को जगा दिया। वह अब और नहीं सह सकता था। उसने अपनी पूरी जिंदगी ईमानदारी से बिताई थी, लेकिन अब उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि दुनिया में सत्य और ईमानदारी से जीतना संभव नहीं है, खासकर तब जब उसके सामने कोई शक्तिशाली और भ्रष्ट व्यक्ति हो।
उस रात, रामलाल ने अंतिम निर्णय कर लिया। उसने अपने घर में रखी पुरानी बंदूक को उठाया और ठाकुर प्रताप सिंह के घर की ओर बढ़ गया। उसके कदम भारी थे, परंतु उसके इरादे अडिग थे। वह अब अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ने जा रहा था।
प्रतिशोध की रात
ठाकुर प्रताप सिंह अपने आलीशान घर में आराम से बैठा था। उसे इस बात का यकीन था कि रामलाल अब हार चुका है और वह कभी उसके खिलाफ कुछ नहीं कर पाएगा। लेकिन तभी दरवाजे पर जोर की दस्तक हुई। ठाकुर ने अपने नौकरों को दरवाजा खोलने का आदेश दिया। दरवाजा खुलते ही रामलाल अंदर आ गया, उसकी आंखों में क्रोध और आंसुओं का संगम था।
ठाकुर प्रताप सिंह ने हंसते हुए कहा, “आ गया, ईमानदार लेखपाल! क्या हुआ, अब माफी मांगने आया है?”
लेकिन रामलाल ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी बंदूक निकाली और ठाकुर प्रताप सिंह पर तान दी। ठाकुर ने घबराकर पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन रामलाल के भीतर का गुस्सा अब अपने चरम पर था। उसने एक ही गोली चलाई, और ठाकुर प्रताप सिंह वहीं ढेर हो गया।
त्रासदी का अंत
ठाकुर प्रताप सिंह के मरने के बाद, रामलाल ने गांव में जाकर खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया, लेकिन उसके चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था। उसे पता था कि उसने जो किया, वह प्रतिशोध था, लेकिन यह भी सच था कि उसके पास अब और कोई विकल्प नहीं बचा था।
रामलाल की गिरफ्तारी हो गई, और कुछ ही दिनों बाद उसे फांसी की सजा सुना दी गई। गांव में लोग अब उसके बारे में नई बातें करने लगे। वह जो कभी ईमानदारी की मिसाल था, अब एक प्रतिशोधी हत्यारे के रूप में जाना जाने लगा।
रामलाल का जीवन एक ईमानदार और निष्ठावान व्यक्ति का था, लेकिन उसकी त्रासदी यह थी कि उसे इस भ्रष्ट दुनिया में न्याय पाने के लिए अपने हाथों से न्याय करना पड़ा। उसकी कहानी एक ऐसी कहानी बन गई, जो यह साबित करती है कि जब सत्य और ईमानदारी का गला घोंटा जाता है, तो एक साधारण व्यक्ति भी असाधारण कदम उठाने को मजबूर हो सकता है
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